Sunday, July 17, 2011

शितितल

शितितल की श्वेत शम्म है
हिमांश फलक पे विराजमान है
यूँ देख देख द्रवित हो उठे
मन माटी मेरा क्यों आज

समय की धारा न बहे हमेशा
कछु किंचित यह रुक सी जाए
कभी कभी विमुख हो जाए
कुछ ऐसी ही सांझ ई आये
बीत गए जो लम्हे वोह फिर
याद है आये, क्यों ये आये?
वो शाम भी कुछ ऐसी ही थी,
शम्म जले थे जिस दिन उस दिन
पहले-पहल तामीर व बातें
हुई थी उनसे, बीते दिन, वे मलिन मृत्तंश
दर पर मेरे जाने क्यों आया!
खोला जब दर मैंने देखा!
बस याद ही आई थी वो याद...

No comments:

Post a Comment